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अर्थशास्त्री ने दिया चौंकाने वाला आंकड़ा
रानाडे ने एक चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया: 'भारत में हर 100 मतदाताओं पर सिर्फ 7 इनकम टैक्सपेयर्स हैं।' उन्होंने इसे अन्य लोकतंत्रों की तुलना में एक अजीब स्थिति बताया। उन्होंने समझाया कि जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) ज्यादा लोगों पर लागू होता है। इसमें गरीब भी शामिल हैं। लेकिन, इससे टैक्स का बोझ असमान रूप से बढ़ता है। उन्होंने लिखा, 'GST एक अप्रत्यक्ष कर होने के कारण स्वाभाविक रूप से प्रतिगामी है। परिवार की आय के प्रतिशत के रूप में GST गरीबों के लिए अमीरों की तुलना में ज्यादा होता है। इसलिए इसका बोझ प्रतिगामी है।' इसके उलट, प्रत्यक्ष आयकर अधिक प्रगतिशील हो सकता है। यह सुनिश्चित करते हुए कि धनी व्यक्ति टैक्स का अधिक हिस्सा चुकाएं।जीएसटी पर निर्भरता को लेकर दी चेतावनी
इस सुझाव पर कि मजबूत जीएसटी कलेक्शन को देखते हुए भारत पूरी तरह से आयकर को खत्म कर सकता है, रानाडे ने इस विचार को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, 'जीएसटी प्रतिगामी यानी रेग्रेसिव है। यह एक गरीब या निम्न-मध्यम वर्ग के परिवार की जेब को अमीरों की तुलना में बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसलिए दर कम होनी चाहिए, आदर्श रूप से केवल 10%।' वर्तमान में, जीएसटी दरें बहुत अधिक हैं। औसत दर 18% है। कुछ वस्तुओं पर 28% टैक्स लगता है। उन्होंने जोर देकर कहा, 'यह आगे बढ़ने का सही तरीका नहीं है।'रानाडे ने 'बंपर' जीएसटी ग्रोथ की धारणा को भी चुनौती दी। उन्होंने कहा, 'जीएसटी की ग्रोथ बिल्कुल भी बंपर नहीं है। पिछले आठ वर्षों में यह नाममात्र जीडीपी वृद्धि की दर से भी नहीं बढ़ी है।' उनका मानना है कि इससे भारत के अप्रत्यक्ष करों पर बढ़ती निर्भरता और प्रत्यक्ष करदाताओं के आधार के सिकुड़ने को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।
रानाडे ने निष्कर्ष निकाला, 'सिर्फ इसलिए कि जीएसटी जुटाना आसान है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम केवल इसी पर निर्भर रहें। हमें अपनी टैक्स प्रणाली को और अधिक प्रगतिशील बनाना होगा और वर्टिकल इक्विटी पेश करनी होगी - अमीर लोग अधिक टैक्स और अधिक प्रतिशत भी चुकाते हैं।' अंतराष्ट्रीय प्रथाओं से तुलना करते हुए उन्होंने जिक्र किया कि कनाडा जैसे देश उपभोग करों की प्रतिगामी प्रकृति की भरपाई के लिए निम्न-आय वाले परिवारों को GST छूट प्रदान करते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत में इस तरह के उपायों को लागू करना अव्यावहारिक हो सकता है। यह पहले से ही जटिल टैक्स प्रणाली को और जटिल बना देगा।V
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